Monday, May 18, 2020

प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर कृपया राजनीति ना करें।


पूरे भारत में प्रवासी मजदूरों की संख्या 15-20 करोड़ है। इतने सारे लोगों को गांव से बड़े शहरों और औद्योगिक इलाकों में पहुंचने में कितने वर्ष लगे होंगे? और उस हिसाब से दुबारा से अपने घर लौटने में कितना समय लगना चाहिए और उसी हिसाब से वो सरकार को/रेलवे विभाग को उनके घर वापसी कराने में कितना समय देना चाहेंगे? और अगर आर्थिक मजबूरी के चलते  उन्हें घर छोड़ना पड़ा तो क्या वो आज इतने समृद्ध हो गए हैं कि गांव जाकर  सुख समृद्धि के साथ  बाकी समय  व्यतीत कर सकें? क्या गांव जाकर वो बाकी ग्रामीणों के लिए कोरोना संक्रमण की समस्या नहीं बढ़ाएंगे? क्या बिहार, ओडिसा, और पूर्वी उत्तर प्रदेश में चिकित्सा की सुविधा इतनी विकसित है कि प्रवासी मजदूरों के कारण बढ़े कोरोना संक्रमण का सामना हो पायेगा?

ये बड़े सारे सवाल हैं जिनका जवाब अगर हम ईमानदारी से  ढूंढना चाहें तो शायद प्रवासी मजदूर के मुद्दे पर राजनीति करना बंद कर देंगे। कोरोना एक बहुत बड़ी आपदा है इसलिए प्रवासी मजदूरों को वापस भेजने की अपेक्षा उनको वर्तमान स्थानों पर रोक कर, फिर से उन्हें काम पर लगाने के बारे में सोचना चाहिए ना कि इस मुद्दे पर राजनीति करने की।

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